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कांचे का खेल…!!!

खामोशियाँ...!!!
खामोशियाँ...!!!
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बड़ी आँड़ी तिरछी रास्तों में…
बिछी हैं सकरी गलियाँ…!!!

हर मोड़ पर दस्तक देती…
अलसाई साँझों की बालियाँ…!!!

सूरज ऐंठकर बैठा दूर…
बयार पकड़ी हैं डालियाँ…!!!

कांचे के इस खेल में अक्सर…
बदल जाती हैं गोलियाँ…!!!

पकड़ भाग रहा सब मंजर…
जैसे ब्याहे जा रही डोलियाँ…!!!

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