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त्रिवेणी के तट पर बैठा जाने कितने एहसास को अपने में लिए जा रहा हूँ…कुछ शाम की चमक हैं…साजो सजावट हैं…लोग हैं हाँ मुकुट धारी…!!!
फरवरी के पच्चीस तारीख…
उड़ेल रही अपनी चमक…!!!
बीहड़ो को काटते बड़ी मस्ती से…
बहती आ रही जमुना भी…
गले लगाने को आतुर संगम पर…!!!
पश्चीम की ओर बैठा सूरज…
मुहर लगा रहा सबके उपस्थिति की…!!!
कोई चुप के देख रहा बिना आये…
गंगा घुल रही जमुना में…!!!
सरस्वती मौन हैं साबुन लिए…
धुल रही सभी के पाप …!!!
नैनी का पुल भी पहन लिया…
नयी आवरण देख मटक रहा…!!!
अथ्केलिया करता गंगा जल गा रहा…
उसके गानों में भी एक अनहद हैं …!!!
अकबर का किला सब कुछ साक्षी हैं इन त्रिवेदियों की हर एक कल-कल का…पूछ लेना बाद में सन कुछ हु-ब-हु बताएगा ये….सच कह रहा आज याद आ गए कुछ और पंक्तियाँ…जन कवि कैलाश गौतम की…!!!
“याद किसी की मेरे संग वैसे ही रहती हैं…
जैसे कोई नदी किसी किले से सत्कार बहती हैं…!!!
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